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भारत में कोरोना वायरस का इलाज करवाने को अगर कोई प्राइवेट हॉस्पिटल का रुख करता है तो उसकी जेब तबीयत से ढीली होना तय है। यहां कोरोना से इलाज का खर्च 1 से 8.5 लाख तक पहुंच रहा है।

देशभर में कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। इस बीच मेट्रो शहरों में लोग इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटलों का भी रुख कर रहे हैं। लेकिन आखिर में यह उनकी जेब पर भारी असर डालता है। इसकी वजह से अब हॉस्पिटल और बीमा कंपनियों के बीच भी तकरार शुरू हो चुकी है। कोरोना के इलाज का बिल 1 लाख से 8.5 लाख रुपये तक आ रहा है। बीमाकर्ताओं का सबसे पहला तर्क है कि वे यह तय नहीं कर सकते कि मरीज को भर्ती होने की जरूरत है या नहीं। फिलहाल भारत में कोरोना मरीज का औसत बिल 1.56 लाख तक पहुंच रहा है।

एक प्राइवेट बीमा कंपनी के सीईओ कहते हैं कि अगर आप हॉस्पिटल का बिल देखेंगे तो पाएंगे कि वे उपकरणों को सैनिटाइज करने के भी पैसे जोड़ रहे हैं। यानी इससे पहले तक वे उन्हें सैनिटाइज नहीं करते थे। कोविड के दौर में हॉस्पिटल हर एक चीज का पैसा ले रहे हैं।

70 हजार रुपये सिर्फ PPE के जोड़े
दिल्ली के सुरेंद्र गौर बताते हैं कि उनके भाई के इलाज का खर्च 4.08 लाख तक आया है। इसमें 70,900 रुपये को सिर्फ पीपीई किट के जोड़े हुए थे। उनका आरोप था कि स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने 22 विजिट के पैसे जोड़े लेकिन वह आया सिर्फ 7 ही बार था। इसी तरह चेन्नै के एक शख्स ने बताया कि उनके पिता का कोरोना इलाज का बिल 4.8 लाख रुपये था। इसमें 75 हजार तो सिर्फ वैंटिलेटर का खर्च था।

कोविड-19 के इलाज में औसत खर्च का आंकड़ा सबसे ज्‍यादा कोलकाता में है जहां ढाई लाख रुपये प्रति पेशंट खर्च करने पड़ रहे हैं। दिल्‍ली में हर पेशंट को औसतन 2.41 लाख रुपये देने पड़ रहे हैं। मुंबई और पुणे में तो 1.19 लाख प्रति पेशेंट से भी कम में इलाज हो रहा है। सूरत और अहमदाबाद में इलाज सबसे सस्‍ता है। वहां औसतन 97 हजार रुपये में कोविड-19 का इलाज हो जाता है।

नैशनल हेल्‍थ अथॉरिटी के एक अधिकारी ने टीओआई से कहा, ‘यह डेटा यह भी दिखाता है कि महाराष्‍ट्र के केसेज उतने गंभीर नहीं हैं और उन्‍हें कम मेडिकल अटेंशन की जरूरत पड़ रही है। जबकि कोलकाता में हालात ज्‍यादा खराब हैं और वेंटिलेटर्स का यूज करना पड़ रहा है। बीमाकर्ताओं के मुताबिक, मुंबई और चेन्‍नई जैसे शहरों में अस्‍पताल शुरू में बहुत ज्‍यादा पैसा वसूल रहे थे मगर कई वजहों से अब कम कर दिया है। महाराष्‍ट्र में सरकार की तरफ से अस्‍पतालों पर दबाव है।

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